मां को भी चाहिए मी टाइम
‘अच्छी लगती है तेरी मासूम शरारतें, लड़खड़ाते क़दमों से चलकर मेरी ओर, अपनी तोतली भाषा में मुझे मां कहना, सुकून मिलता है तुझे सीने से लगाकर, तेरी हंसी से आती है मेरी चेहरे पर मुस्कान, तेरी ख़ुशी के लिए मंज़ूर है हर ़कुर्बानी मुझे. बस चाहती हूं चंद लम्हें ख़ुद को तलाशने, अपने वजूद को बनाए रखने के लिए ताकि तुझे भी फ़ख्र हो अपनी मां पर.’
हर मां के दिल में शायद यही जज़्बात होते हैं, त्याग और ममता की मूर्ति का लबादा पहनाकर हमेशा ही औरत/मां को ये एहसास दिलाया गया है कि उसके लिए परिवार और उसका बच्चा ही सब कुछ है. ये बात सच है कि हर मां के लिए उसका बच्चा सबसे पहले होता है बाकी सब कुछ बाद में, मगर इसके साथ ये बात भी सौ फीसदी सही है कि मां, पत्नी होने के साथ ही औरत का अपना भी अलग, अस्तित्व/पहचान होती है. उसकी भी कुछ इच्छाएं होती है, जो परिवार और बच्चों से अलग होती है. कुछ समय उसे अपने लिए भी चाहिए जब वो किसी की पत्नी, मां नहीं स़िर्फ मैं हो.
आज की भाषा में जिसे मी टाइम कहा जाता है, उसकी ज़रूरत हर मां को होती हैं. हर दिन एक ही तरह के रूटीन से जब बाकी इंसान बोर हो जाते हैं तो क्या मां नहीं होती? ये बात समाज और परिवार को समझनी चाहिए. साथ ही महिलाओं को ख़ुद भी पहल करनी चाहिए. लड़ाई-झगड़े से नहीं, बल्कि प्यार से अपने हमसफ़र और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ तालमेल बिठाकर वो कुछ समय अपने लिए निकाल सकती है, जिसमें वो अपने शौक़ पूरे करके ख़ुद को तरोताज़ा कर सकती है. ज़रा याद करिए पूरे साल ऑफिस के काम के बाद जब आप कुछ दिनों की छुट्टी मनाकर वापस आते हैं, तो कितना फ्रेश फील करते हैं और दोबारा नई ऊर्जा के साथ काम शुरू करते हैं. इसी तरह यदि मां को अपने लिए मी टाइम मिल जाए तो वो अपनी ज़िम्मेदारी और बेहतर तरी़के से निभा पाएगी.
अक्सर महिलाएं अपने बच्चों से दूर होने पर गिल्टी फील करने लगती हैं, उन्हें लगता है कि वो बच्चे के साथ नाइंसाफ़ी कर रही है, जबकि ऐसा नहीं है. महीने में एकाध दिन यदि कुछ घंटे आप बच्चे को छोड़कर स़िर्फ अपनी ज़िंदगी जी रही हैं, तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है, अपनी ज़िंदगी पर आपका ख़ुद का भी तो कई हक़ है. तो ख़ुश रहने के लिए सबसे पहले अपनी गिल्ट फीलिंग से बाहर आइए और उस पल का आनंद लीजिए. क्या पार्टी में जाने या दोस्तों संग होटल में मस्ती करते समय आपके पति को गिल्ट फील होता है कि उन्होंने बच्चे को समय नहीं दिया? नहीं ना... फिर आप क्यों ऐसा सोचती है, परिवार और बच्चा आपकी ज़िम्मेदारी है इस बात में कोई दो राय नहीं है, मगर ख़ुद को ख़ुश रखने की ज़िम्मेदारी भी तो आप पर ही है.
कुछ लोगों को ग़लतफ़हमी हो जाती है कि मी टाइम की बात स़िर्फ वर्किंग मदर के लिए होती है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. घर पर रहने वाली मां के लिए ये ज़्यादा ज़रूरी है, क्योंकि गैस पर चाय की केतली चढ़ाने से शुरू हुआ उनका दिन रात को डिनर में पति और बच्चों के लिए क्या बनाऊं की टेंशन में ही बीत जाता है. ऐसे में दोपहर का कुछ समय अपने लिए निकालकर अपना कोई पसंदीदा काम करें या दोस्त/क़रीबी रिश्तेदार जिनेस आपका संबंध अच्छे हों, को कुछ देर के लिए बच्चों की ज़िम्मेदारी सौंपकर कहीं बाहर घूम आएं/शॉपिंग कर लें, वरना बच्चों और पति के प्यार का बंधन बहुत जल्दी बोझ लगने लगेगा. अपने लिए कुछ न कर पाने पर उपजी कुंठा व तनाव अंदर ही अंदर आपको तोड़ देता है, जिसका असर तुंरत आपके व्यवहार पर नज़र आने लगता है. बात-बात पर चिढ़ना, बच्चे को मारना ये सब आपकी फ्रस्ट्रेशन दिखाता है. इस फ्रस्ट्रेशन का असर आपके निजी और सामाजिक दोनों जीवन पर पड़ता है यानी आपकी ख़ुशी और संतुष्टि से सारी चीज़ें जुड़ी हुई है. अतः अपनी ख़ुशी का ख़्याल रखें. जिस तरह ज़्यादा काम लेने के बाद मशीन को कुछ देर बंद कर दिया जाता ताकि दोबारा वो पूरी स्पीड में काम करें, उसी तरह अगर आप भी पूरी क्षमता और ख़ुशी से अपनी मां होने की ज़िम्मेदारी निभाना चाहती हैं, तो कुछ समय ख़ुद के लिए भी निकाले, थोड़ी-सी स्मार्टनेस दिखाकर और चीज़ों को मैनेज करके आप ये काम आसानी से कर सकती हैं.